Wednesday, December 5, 2012

Individual Liberty, vyaktigat svatantrata

पिछले कुछ वर्षों से भारत में अन्ना हजारे और लोकपाल बिल के कारण राजनैतिक परिवर्तन की एक लहर चल उठी है। सम्पूर्ण रूप से भ्रष्ट सरकार से अब सब तंग आ चुके हैं। अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी स्थापित करी है और हम सभी आशा करते हैं की सच्चे इमानदार लोग हमारे नए नेता बनकर पतन और भ्रष्टाचार से हमे आजाद करेंगे।  कहने के लिए हमारा देश "आजाद देश" है पर क्या हम सच में आज़ाद हैं? आख़िर आज़ादी का मतलब क्या है? अपने देश से विदेशी सत्ता को हटा कर अपने देशवासियों की बनी हुई संसद बैठा लेना, अपने आप को संवैधानिक तौर से मत का अधिकार देना, चुनाव बहुमत से सरकार बना लेना, क्या इतना काफ़ी है? अपने आप को लोक्तन्त्र, गणराज्या घोषित कर लेना, जैसा की हुँने ६५ साल पहले किया, क्या यही आज़ादी है? मेरा कहना ये नहीं की विदेशी सरकार को भारत से निकालना कोई आसन कार्य था। पर हम वहीँ क्यों रुक गए? उसके बाद जब स्वतन्त्र रूप से अपना निर्माण करने का समय आया तो हम चूक क्यों गए? हमारे स्वतन्त्र होने का प्रयास अंग्रेजों को निकाल कर क्यों समाप्त हो गया? सदियों से शायद हम यही भूल करते आ रहे हैं की हम अपनी देख-रख कुशल-मंगल की बागडोर किसी और के हाथ में दे देते हैं। चाहे वो शेहेंशाह अकबर हो, या पंडित नेहरु, या फिर नरेन्द्र मोदी या अरविन्द केजरीवाल, हम अपने नेताओं पर अँधा विश्वास करते हैं। हम सोचते हैं की कोई नेता या कोई पार्टी हमारे हित के लिए कुछ करेगी। हमारा अच्छा बुरा अब इन्ही के हाथ में है। इस तरह की सोच ही पराधीनता की पहली निशानी है।

 अवश्य आप यही सोच रहे होंगे कि किसी राजा महाराजा, विदेशी सत्ता, तानाशाही से, या फिर अपने पडोसी देशों जैसे मिलिटरी या कम्युनिस्ट राज्य से तो हम अच्छे ही है और उनकी तुलना मे हम आज़ाद भी हैं। परंतु यदि  व्यक्तिगत स्तर पे, या जिसे हम इंग्लीश मे कहें कि "individual level" पे - परिवार, देश, समाज सबसे परे हट कर, केवल और केवल एक अकेले व्यक्ति के सन्दर्भ मे देखा जाए  - तो इस राष्ट्रीय स्तर की आज़ादी की परिभाषा क्या मायने रखती है? 


हम स्वतंत्र, स्वराज, स्वदेश की बातें करते हैं पर हम आज़ादी के मूलतम रूप को, व्यक्तिगत स्वाधीनता, व्यक्तिगत स्वत्व, individual liberty के बारे मे क्यों नही सोचते? क्या हम अपने आप को इतना महत्व भी नही देते की हम अपनी खुद कीआज़ादी के बारे मे सोचें? इस सरल और साधारण विषय को समझना कठिन नही पर अक्सर ही हम विचारों को सरल रूप मे ना देख कर क्लिष्ठ उत्तरों की खोज मे लग जाते हैं और किसी छोटी सी बात को पेचीदा बना लेते हैं।व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी ऐसा ही एक विषय है। हम अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को त्याग कर समाज देश दुनिया की समस्यों मे लीन हो जाते हैं। हम सोचते हैं की अगर हमारा देश स्वतंत्र हो, अगर हमारे समाज मे बुराइयाँ ना हों, अगर हम सब मिलकर एक उत्तम समाज का निर्माण करें तो हम सुखी रहेंगे। लेकिन अगर हम इसका ठीक विपरीत करें - हम समाज और देश को कुछ देर त्याग कर अपनी स्वतंत्रता और अपने सुख समृधि के बारे मे सोचें, और अगर हम ऐसी स्वतंत्रता को प्राप्त कर लें तो बाकी की समस्याएँ स्वयं ही छोटी और सरल हो जाती हैं।

यह लेख और आने वाले कुछ और लेख individual liberty, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में मेरी समझ व्यक्त करने का तुच्छ प्रयास है। आशा है इसे पढ़ कर आप, और इसे लिख कर मै इस विषय के बारे में चिंतन मनन करेंगे, और ये भी देखेंगे की किस प्रकार हम अपने शासन अनुशासन में इस सहज विचार को ध्यान में रख कर अपूर्व सुधर ला सकते हैं।

4 comments:

  1. You can also consider posting on liberty and why state exists. What is the role of state. Does it exists only to protect liberty or it has some more role

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  2. Are you kidding me, Priya? This is brilliant. Main to yahan maatra hi sochti re jaati hoon aur tum ne to poora post itni shudh hindi main likh daala. and the content itself is a great read. look fwd to your next post.

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  3. Hahaha! Thanks Tanu. Tum bhi agar meri tarah UP me UP board school se parhi hoti to tumhari Hindi bhi achhi hoti. They force it down your system!
    Yes I want to start writing the next post before I lose momentum...

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